सुबह सुबह ज़ोर से हँसना और सारे दिन मुँह लटकाए घूमना, पता नहीं ऐसे में हँसी की दवा कितना असर करती होगी और करती होगी भी कि नहीं.
3.
जाने कितनी फिक्रो की बोरियां ख़ुद पे लादे,, उनका साथ देना भीचाहती हूँ तो नही दे पाती … ज़ोर से हँसना चाहती हूँ,, मैं भी खिलखिलाना चाहती हूँ,, इतने ज़ोर से की आसमानों तकआवाज़ जाए …..
4.
यूँ तो औरतों का ज़ोर से हँसना भी मना हुआ करता था और बिन बताए कहीं आने-जाने पर भी थी पाबंदी उन्हें पहनाए गए थे-कमरबंद-पायल-पाजेब-चूडियाँ-कंगन और तमाम गहने ज्यों हम बाँधते हैं-गाय-बैल-भैंसों के गले में घंटियाँ कि उनके आने-जाने का पता चलता रहे उनके मालिकों को